*लम्भुआ में लापरवाह स्टाफ नर्स की गलती से नवजात की जान पर बन आई, सरकार की “बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं” की पोल खुली कब होगी कार्यवाही या फिर सब ठंडे वस्ते में*
अशोक कुमार वर्मा
*लम्भुआ सुल्तानपुर*
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का एक और चौंकाने वाला मामला लम्भुआ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से सामने आया है, जहाँ एक स्टाफ नर्स की गलत इंजेक्शन लगाने से नवजात शिशु का पैर संक्रमित हो गया है। यह घटना 8 सितंबर की बताई जा रही है, जब शाहगढ़ की रहने वाली महिला *रूमन सोनकर* ने 7 सितंबर को एक पुत्र को जन्म दिया था। अगले ही दिन सीएचसी में तैनात *स्टाफ नर्स अर्चना रावत* ने बच्चे को टीका लगाया लेकिन वही टीका अब नवजात की जान पर बन आया है।
टीका लगने के कुछ ही घंटों बाद बच्चे के पैर में सूजन और दर्द शुरू हो गया, जो धीरे-धीरे *गंभीर इंफेक्शन* में बदल गया। परिजनों ने जब इस बाबत स्वास्थ्य कर्मचारियों से शिकायत की, तो उन्हें यह कहकर टरका दिया गया कि
*“टीके का असर है, खुद ठीक हो जाएगा।”* लेकिन अब हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि बच्चे का पैर सड़ने की कगार पर पहुँच गया है।
*पीड़ित परिवार की सुनवाई नहीं, नर्स का ट्रांसफर कर विभाग ने झाड़ ली जिम्मेदारी*
पीड़ित महिला *रूमन सोनकर* अपने नवजात को लेकर दर-दर भटक रही है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग से लेकर जिला प्रशासन तक किसी ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। बताया जा रहा है कि जिस स्टाफ नर्स अर्चना रावत पर लापरवाही का आरोप है, उसका *लम्भुआ से ट्रांसफर कर दिया गया* है — यानी विभाग ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है।
*लम्भुआ सीएचसी पर लगातार बढ़ रहे हैं लापरवाही के मामले**
लम्भुआ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का यह पहला मामला नहीं है। आए दिन यहाँ मरीजों की लापरवाही से जान पर बन आती है, दवाइयों की कमी, गलत इंजेक्शन, और डॉक्टरों की अनुपस्थिति आम बात हो चुकी है।
*स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक के दौरों के बावजूद व्यवस्था बदहाल**
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री **बृजेश पाठक** भले ही अस्पतालों के औचक निरीक्षण कर रहे हों और सुधार के बड़े-बड़े दावे कर रहे हों, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि उनके विभाग की हालत दयनीय है। लम्भुआ जैसे कस्बों में स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह से **ध्वस्त** हो चुकी हैं।
**सरकार के “बेहतर स्वास्थ्य” के दावे पर सवाल**
एक तरफ सरकार *“स्वस्थ उत्तर प्रदेश”* का नारा देती है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में न तो दवाएँ हैं, न जिम्मेदारी का एहसास। सवाल यह उठता है कि अगर एक नवजात तक को सुरक्षित टीका लगवाने की गारंटी नहीं है, तो स्वास्थ्य व्यवस्था आखिर किस दिशा में जा रही है?
*अब जनता पूछ रही है*
क्या योगी सरकार बताएगी कि ऐसे मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों पर कब कार्रवाई होगी?
कब तक आम जनता लापरवाही की कीमत अपनी जान से चुकाती रहेगी?
