जन्म से कोइ श्रेष्ट नहीं होता है, गुण से ही श्रेष्ठता सिद्ध

पांच पहर धंधा किये
तीन पहर गए सोय ।
राम नाम भजते नहीं,
तो मुक्ति कहा से होय ।।
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न हि जन्मनि जेष्ठत्वम्,
गुणैर्जेष्ठत्वमुच्यते ।
गुणाद गुणत्वमायाति ,
दुग्धं, दधि घृतं यथा ।।

भावार्थ:-

जन्म से कोइ श्रेष्ट नहीं होता है, गुण से ही श्रेष्ठता सिद्ध होती है । जैसे दूध , दही ,मक्खन ,घृत ,पनीर ,मावा(खोवा) छेना अपने अपने गुण से ही अलग अलग भाव में खरीदे और बेचे जाते हैं l यद्यपि सबकी उतपत्ति दूध से ही हुई है । उसी प्रकार मनुष्य भी जन्म से श्रेष्ठ अथवा महान नहीं माना जा सकता है । अपने वर्तमान कर्म के द्वारा ही समाज में स्थान प्राप्त करता है।।

ठीक उसी प्रकार से मनुष्य भी समाज में अपने कर्मो से ही प्रशंसनीय , आदरणीय ,सम्माननीय और निंदनीय होता है!!

किसी जीव का तिरस्कार मत करो । उसके पापों का तिरस्कार करो ।।

चोरी और व्यभिचार पाप, छल,, कपट, दम्भ,,पाखंड ,, धोखाधड़ी , बेईमानी , सगा भाई भी ये पाप करे तो उसका भी साथ छोड़ देना चाहिए ।

इन्द्रियों में जो फंसेगा वह भक्ति नहीं कर सकता ।।

तप का प्रथम अंग मन , बाणी पर नियंत्रण करना है ।।

????????????हरि ॐ नारायण????????????

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