ललही छठ की पूजा विधि संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए की जाती है। यह व्रत विशेषकर महिलाएं बेटों की सलामती के लिए रखती हैं। यहां ललही छठ की पूजा की सम्पूर्ण विधि विस्तार से प्रस्तुत है:
पूजा सामग्री
गौरी-गणेश की मूर्ति या चित्र
कुशा घास
महुआ की पत्तियां
हल्दी, कुमकुम, रोली, चंदन
अक्षत (अक्षत चावल)
सात प्रकार के अनाज
भैंस का दूध या अन्य दूध
दही और घी
मिट्टी के कुल्हड़
लाल चावल (लाल भात)
पुष्प, दीपक, फल, मिठाई आदि
पूजा की विधि
संकल्प और स्वच्छता: सुबह जल्दी नहाकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा के लिए कुशा और महुआ की पत्तियां लेकर पूजा स्थल तैयार करें।
गोबर से चित्र: घर की दीवार या पूजा स्थल पर गोबर से छठ माता या हल की तस्वीर बनाएं।
पूजा प्रारंभ: गौरी-गणेश की पूजा करें, हल्दी, कुमकुम से अभिषेक और अक्षत चढ़ाएं।
हल की पूजा: हल को पवित्र जल और पूजा की सामग्री से सजाएं। हल पर सात प्रकार के अनाज, महुआ, दूध, दही आदि चढ़ाएं।
कथा और गीत: पूजा के दौरान कथा सुनें, जैसे हरछठ महारानी और ग्वालिन वाली कहानी। छठी माता के भजन-गीत गाएं।
हवन और अर्घ्य: महुआ और तिनका चावल डालकर हवन करें। शाम को चंद्रमा को भैंस के दूध या अन्य दूध और पुष्पों के साथ अर्घ्य दें।
रखना व्रत: व्रती महिलाएं इस दिन अन्न का त्याग करती हैं, जोतकर उपजाए गए अनाज से दूर रहती हैं।
व्रत खोलना: व्रत पूरी श्रद्धा से पूजा करने के बाद पारंपरिक अखंड व्रत खोलने की विधि अपनाएं। आमतौर पर लाल भात और दही या दूध उनका पहला भोजन होता है।
अतिरिक्त नियम और जानकारी
कई महिलाएं समूह में पूजा करती हैं, कुछ अकेले भी कर सकती हैं।
हल की पूजा में छह बार हवन करना शुभ माना जाता है।
पूजा के दौरान सिर धकेल कर बैठना व अन्य नियमों का पालन करें।
पूजा के बाद पूजा सामग्री को जल विसर्जन या देव वृक्ष के नीचे सुरक्षित करने की परंपरा है।
यह पूजा विधि ललही छठ को सफल और प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पुत्र की लंबी आयु और सुख-शांति की कामना करना है, और इसे बड़े श्रद्धा से मनाया जाता है।
यदि आपको वीडियो के माध्यम से विधि समझनी हो तो भी कई चैनलों पर विस्तृत पूजा विधि उपलब्ध हैं, जिनमें कुशा लगाना, हल्दी लगाना, कथा पढ़ना, हवन करना, अर्घ्य देना जैसी सभी महत्वपूर्ण बातें शामिल हैं

 
									 
		 
		 
		