पैतृक संपत्ति की देखभाल
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इस संसार में हर व्यक्ति के पास कम या अधिक पैतृक संपत्ति होती ही है और उसे उसकी देखभाल जरूर करनी चाहिए क्योंकि यह ऐसी सम्पत्ति होती है,जो हम अपने पूर्वजों से इसलिए पाते हैं कि हम उनकी संतान हैं। भले ही व्यक्ति कहीं अन्य शहरों में जाकर नौकरी आदि के लिए रह रहा हो, जो उसके लिए अत्यावश्यक है, परन्तु उसे अपनी पैतृक सम्पत्ति की भी देखभाल करने के लिए समय-समय पर आते-जाते रहना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि हम चाहे जहां रहते हों, हमारी पहचान अपने मूल निवास से ही होती है। हमारे मूल निवास से ही हमारा वास्तविक परिचय भी होता है। यह हमारी अचल सम्पति है, जिसे हमारे पूर्वजों ने विपरीत परिस्थितियों में भी संभाल कर हमारे लिए रखा है और अब वह हमारे स्वामित्व में है। शायद इतनी सम्पत्ति बनाने में हममें से अधिकांश को पूरा जीवन भी कम पड़ जायेगा और पैसे का भी अनुमान लगाना कठिन होगा, इसलिए अपनी पैतृक संपत्ति की देखभाल करना हमारा परम कर्तव्य है। एक और बात विचारणीय है कि कुछ लोगों की रुचि नौकरी-धन्धे में नहीं होती। वे या तो इसी पैतृक सम्पत्ति के सहारे जीवन यापन करते हैं या कोई परिवार का जिम्मेदार व्यक्ति कमाकर उन्हें खिलाने वाला हो। वहीं कुछ तो इस बात पर भी विश्वास करते हैं कि—-
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।।
ऐसे लोगों का भी भरण-पोषण तो इसी पैतृक संपत्ति के सहारे होता है।
नौकरी-धंधा के लिए जब कोई व्यक्ति अपनी प्यारी जन्मभूमि छोड़कर जाने लगता है तो वह मन मसोसकर रह जाता है। मन में छटपटाहट भी होती है, कलेजा धड़कने लगता है, लेकिन धन कमाने के उद्देश्य से उसे अपनी जन्मभूमि छोड़कर जाना ही पड़ता है। सच कहें तो अभी भी कर्मभूमि पर निवास करने के बाद भी इतने लम्बे अंतराल के बाद जब गांव के लिए निकलते हैं तो मन में अजीब सा उल्लास उमड़ने लगता है और जब गांव से कर्मभूमि की तरफ प्रस्थान करते हैं तो मायूसी का अनुभव होता है और जाने का मन नहीं करता।
मातृभूमि से दूर होने की पीड़ा तो सब को बेचैन कर ही देती है, जिसका अनुभव लगभग सभी को हुआ होगा। इसमें सन्देह नहीं कि मनुष्य अर्थोपार्जन करके अपना एवं अपने परिवार का खर्च चलाते हुए कुछ अचल संपत्ति भी बनाता है,साथ ही साथ वह अपने जीवन की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करता है। कुछ लोग साल में एक दो-बार अपनी माटी की याद करके आते-जाते रहते हैं और फिर मजबूरी में उन्हें वापस जाना भी पड़ता है, वहीं कुछ लोग आने-जाने को बोझ समझकर जहां नौकरी आदि करते हैं, वहीं बसना पसंद करते हैं और गांव की अवहेलना करने लगते हैं। उनका सम्बन्ध धीरे-धीरे गांव से टूटने लगता है। गांव की राजनीति भी अजीब ही है। साथ रहने पर तो लोग आपके हिस्से की पैतृक संपत्ति पर कब्जा कर लेना चाहते ही हैं, दूर रहने और बहुत कम आने, बहुत दिनों बाद आने तथा न आने पर क्या होता होगा,इसे हम अच्छी तरह समझ सकते हैं। आपके न रहने पर आपकी ही जमीन पर आसानी से कब्जा करके यदि वे कोई स्थाई निर्माण कर लें, तो सोचिए बाद में आप क्या कर सकते हैं? इसलिए आप कहीं भी रहें, अपने और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए अपनी पैतृक सम्पत्ति की देखभाल करते रहें, क्योंकि मातृभूमि से ही हमारा परिचय समाज में कराया जाता है और हमारे पश्चात् हमारी सन्तानों को उसका स्वामित्व प्राप्त होता है।
गांव के निवास की अहमियत उनसे पूछिए जो लाकडाउन में आकर शौक से गांव में ठहरे और उनसे भी पूछिए जिन्हें अपने ही घर में पराया समझा गया और ठुकरा दिया गया। उन्हें कहीं अन्यत्र ठिकाना ढूंढ़ना पड़ा या वापस लौट जाना पड़ा। यही नहीं, उनसे भी पूछिए, जिन्हें अपने ही घर से बाहर कर दिया गया और अपने किसी रिश्तेदार के यहां आश्रय लेना पड़ा। अपने पारिवारिक लोगों पर भी आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि अक्सर वे ही आसानी से अधिक से अधिक धोखा दे जाते हैं, जिन्हें हम अपना कहते हैं और आंख मूंदकर विश्वास करते हैं। यह भी सच है कि आपत्ति में दूसरों की अपेक्षा अपने लोग ही हमारे काम भी आते हैं। वे जैसी सहायता हमारी कर देंगे,वैसी सहायता कोई दूसरा नहीं कर सकता। आखिर अपने तो अपने ही होते हैं न, फिर भी सावधानी रखना आवश्यक है।
ध्यान रहे कि पैतृक संपत्ति के बराबर सम्पत्ति बनाने में आप को एंड़ीचोटी का जोर लगाना होगा अथवा शायद आप उससे भी अधिक सम्पत्ति बना सकते हैं, फिर भी जो अपने पास पहले से पूर्वजों का दिया हुआ है,उसकी देखभाल तो करते रहें, क्योंकि जड़ को संभालना जरूरी है। बिना जड़ के पौधों को भी आश्रय कहां मिलता है। उन पौधों का फलना-फूलना तो दूर रहा, जीवित रहना भी मुश्किल हो जाता है। बिना जड़ के हमारी दशा जलकुंभी की तरह हो सकती है। अगर हमारी जड़ बनी हुई है, तो हमारी आय का साधन भी पर्याप्त होगा, अन्यथा वह भी कम पड़ेगा। कहा भी गया है-
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अतः देखभाल तो जरूरी है ही। आजकल तो इतनी सुविधा हो गई है कि फोन आदि के माध्यम से पल-पल की जानकारी मिल सकती है। गांव में कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें जगह-जगह खबर देते रहने का नशा होता है। ऐसे लोगों के सम्पर्क में रहने से दूर होने पर भी आपको गांव की पल-पल की खबर आसानी से मिल सकती है, जो आवश्यक भी है। दूसरों की सोच मेरी सोच से भिन्न हो सकती है, लेकिन इस बात में सच्चाई तो है कि अपनी अचल संपत्ति की देखभाल जरूरी है,जो हमें हमारे पूर्वजों से प्राप्त हुई है। कम से कम हमें यह तो ध्यान रखना ही है कि जिस संपत्ति को हमारे पूर्वजों ने विषम परिस्थिति में भी बचा कर रखा, उसे हम भी बचा कर रखें,भले और संपत्ति न बना पाएं। अतः अपनी सम्पत्ति की देखभाल,अपनों से मेल-मिलाप, रिश्तों की गांठ कसने के लिए एवं सामाजिक बंधन मजबूत करने के लिए गांव में आया-जाया करें।👆
🙏🏼 माता प्रसाद चतुर्वेदी
सेवानिवृत्त शिक्षक
मुंबई
पैतृक संपत्ति की देखभाल
