*चुनौती बड़ी विकास ठप, मिले विशेष बजट तो चले विकास की गाड़ी*

*चुनौती बड़ी विकास ठप, मिले विशेष बजट तो चले विकास की गाड़ी*

प्रेम शर्मा

सरकार के पास बजट नहीं होने से गांव का विकास ठप है। ग्राम प्रधान किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। उन्हें उपाय नहीं सूझ रहा है कि वे काम करें कैसे? मनरेगा मजदूरों के पारिश्रमिक का भुगतान हो या फिर कोई और पेमेंट-सब ‘पेंडिंग में है।काम न होने से परेशान जनता भी उन्हें घेरती है। उस वक्त वे उसके सवालों के जवाब नहीं दे पाते हैं। प्रधान कहते हैं-“बेशक चुनौती बड़ी है”बशर्ते, उन्हें विशेष बजट मिले। बक्शा ब्लॉक मुख्यालय पर जुटे ग्राम प्रधानों के साथ चर्चा के दौरान शासन-प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाया गया| यह बताने पर कि वे भी ‘गांव की सरकार हैं…फिर कोफ्त किस बात की-उनका गुस्सा फूट पड़ता है। गंभीर आवाज में पूछते हैं-‘क्यों न हो कोफ्त? हमें गांव की सरकार तो बता दिया गया लेकिन बजट और सुविधाएं कुछ नहीं.आखिर कैसे करे काम? बजट के अभाव में सारे काम ठप हैं…आप ही बताइए कि इन्हें कैसे पूरा कराएं? उनके तमाम सवालों ने यह बात साफ कर दी कि ‘गांव की सरकार के नाम पर शासन-प्रशासन सिर्फ लफ्फाजी करता है। वास्तविकता कुछ और है। वह यह कि उसे गांवों के विकास या खुशहाली से कोई लेना-देना नहीं है। प्रधानों का दर्द यह है कि शासन-प्रशासन गांवों की उपेक्षा करता है लेकिन जनता सवाल उनसे करती है। ऐसा नहीं कि वे गांवों में बिजली, पानी और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के अभिलाषी नहीं हैं|बिल्कुल चाहते हैं कि सबकुछ अच्छा हो। अफसोस? वे कुछ कर नहीं सकते हैं। उनके हाथ बंधे हुए हैं। ग्राम प्रधान संघ (बक्शा) के अध्यक्ष बृजेश निषाद ने कहा कि विकास का बजट दूसरे मदों में ट्रांसफर कर दिया गया। ऐसे में खाक होगा विकास कार्य! ग्राम पंचायत निधि से पंचायत सहायकों, सामुदायिक शौचालय समूहों और उनके मानदेय का भुगतान होता है। इसे कई मदों से जोड़े जाने के बाद सबकुछ ठप होना स्वाभाविक है। हुक्मरानों से कई बार गुहार की गई कि वे ग्राम पंचायत निधि को हाथ न लगाएं। उसका उपयोग सिर्फ विकास कार्यों में किया जाए लेकिन उनकी कौन सुने। मानो हुक्मरानों ने तय कर लिया है कि गांवों के विकास में वे रोड़ा अटकाएंगे।

मनरेगा के पारिश्रमिक का भुगतान नहीं होने से दिक्कत : लखनीपुर के ग्राम प्रधान राहुल सिंह ने कहा कि नवंबर से अब तक मनरेगा के मजदूरों का पारिश्रमिक नहीं दिया गया है। वे रोज तकादा करते हैं। सवाल है कि कब तक उन्हें टाला जाय? कुछ मजदूर ऐसे हैं जिनका सालभर से पेमेंट लटका है। मजदूरी नहीं मिलने के कारण उन्होंने काम करना छोड़ दिया है। जाहिर है कि विकास कार्य ठप होंगे। दबाव बनाये जाने पर वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि पहले पुराना भुगतान कराया जाय, फिर नये काम के बारे में सोचेंगे। उनकी बात सुनने के बाद कुछ और कहने की गुंजाइश नहीं बचती है। विडंबना यह है कि पारिश्रमिक नहीं मिलने के लिए वे उन्हें ही दोषी मानते हैं। दक्षिण पट्टी के प्रधान राजेंद्र यादव ने कहा कि उन्होंने उधार लेकर पंचायत भवन और सड़कें बनवा तो दीं लेकिन बजट नहीं मिला। अब दुकानदार उन्हें घेरते हैं। मैटेरियल के पैसे मांगते हैं। समझ में नहीं आता है कि उनका पेमेंट कैसे किया जाए। अफसर बजट आने पर धनराशि देने की बात कहकर उन्हें टाल देते हैं। कहा कि उन्हें कठिन चुनौती का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि उनके गांव में पक्के काम का भुगतान करीब डेढ़ साल से रुका है।

पुलिस भी प्रधानों की करती है उपेक्षा : ग्राम प्रधान चंचल सिंह ने कहा कि अधिकारियों के दबाव में प्रधानों ने पंचायत भवन का निर्माण पूरा करा दिया। भुगतान का मामला अधर में है। कब तक होगा? इसका जवाब किसी जिम्मेदार के पास नहीं है। हां, उनके दावे बड़े-बड़े जरूर हैं। लगता हीं नहीं कि उन्हें सरकार की मंशा से कोई लेना-देना है। एकबारगी ऐसा लगता है कि यहां के अफसरान शासन और उसके आदेशों को ठेंगे पर रखते हैं। केंद्र-प्रदेश सरकार का स्पष्ट आदेश है कि गांवों के विकास में धन की कमी आड़े न आने दी जाए। रोड़ा अटकाने वाले बर्दाश्त नहीं होंगे। राजेंद्र यादव ने कहा कि गांव में विवाद-फसाद होने पर पुलिस उनकी मदद नहीं करती है। और तो और, वह कोई-न-कोई वजह ढूंढ़कर उन्हें ही फंसाने में जुट जाती है। सच है कि विकास कार्य के दौरान आये दिन तनाव होते हैं। कहने में गुरेज नहीं कि पुलिस-प्रशासन ऐसे मामले सुलझाने के बजाय उन्हें जटिल बनाता है। शासन इस पर विशेष ध्यान दे। जरूरी है कि उन्हें मुकम्मल सुरक्षा दी जाये ताकि काम सुचारू रूप से चल सके।

मजदूरों की पारिश्रमिक बढ़े, प्रधानों को मिले पेंशन : चौखड़ा के प्रधान विजय भारत यादव, कर्तिहा के काशिद अली और उत्तर पट्टी गांव की सुनीता यादव ने कहा कि महंगाई के इस दौर में कौन मजदूर 237 रुपये प्रतिदिन पर काम करेगा! जॉब कार्डधारी भी काम करने से कतराने लगे हैं। उनसे काम करने के लिए कहा जाता है तो ही सवाल करते हैं-‘क्या इतने कम पैसे में आप काम करेंगे? उनके प्रश्न पर निरुत्तर होना पड़ता है। तरकीब यही हो सकती है कि उनका मेहनताना बढ़ाकर 350 रुपये प्रतिदिन किया जाये। पोखरियापुर गांव (सिकरारा) के प्रधान बृजेश यादव ने कहा कि विधायकों और सांसदों को पेंशन मिलती है। प्रधानों के लिए इसकी व्यवस्था नहीं है। वे भी जनप्रतिनिधि हैं। उन्हें पेंशन दी जाये। उनका सम्मान बढ़ेगा।

प्रधानों ने गिनाई कई समस्याएं : ग्राम प्रधान अभिषेक सिंह, नीतू सिंह और चंचल ने कहा कि उन्होंने पहले काम कराया था लेकिन बजट आने पर दूसरे लोगों का भुगतान हो गया। वे फंस गये। मजदूर और दुकानदार उनसे पैसे मांगते हैं। बड़ा सवाल यही है कि वे भुगतान कहां से और कैसे करें? उन्होंने बजट वितरण में पारदर्शिता लाने का सुझाव दिया। पहले कराये गये काम का भुगतान प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। अभिषेक सिंह ने कहा कि उन्होंने तालाब का सौंदर्यीकरण शुरू कराया। गांव के कुछ लोगों ने उन्हें रोक दिया। राजस्व विभाग से मदद मांगने का फायदा नहीं हुआ। विकास कार्य में बाधा डालने वालों पर कार्रवाई नहीं होती है जिससे उनका मन बढ़ा रहता है। पुलिस-प्रशासन को प्रधानों का सहयोग करना चाहिए ताकि विकास की रफ्तार न थमे।

ग्राम पंचायत निधि का उपयोग गांवों में विकास कार्य पूरा कराने में किया जाए। अन्य मदों के लिए अलग बजट का प्रावधान किया जाये। इससे विकास की रफ्तार नहीं थमेगी।

मजदूरी भुगतान के लिए निश्चित समय सीमा तय हो। देरी होने पर अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाये। उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाये।

ग्राम पंचायतों को विभिन्न मदों में बकाये के भुगतान के लिए विशेष बजट जारी किया जाये। किसी भी निर्माण कार्य के भुगतान के लिए समय सीमा तय हो।

पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया जाये कि वे विकास कार्यों में बाधा डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। वे प्रधानों का सहयोग करें।

ग्राम प्रधानों को सचिवों के बराबर वेतन और निश्चित कार्यकाल के बाद पेंशन देने की व्यवस्था की जाये। इससे उन्हें आर्थिक चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

पंचायत निधि का ट्रांसफर अन्य मदों में कर दिया जाता है। इससे विकास कार्य अधर में लटक जाता है। सड़क, पानी और सफाई कार्य नहीं हो पाता है।

मनरेगा मजदूरों का कई महीनों से भुगतान नहीं किया गया। इससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। ग्राम प्रधानों पर मजदूरी के पेमेंट का भारी दबाव रहता है।

पंचायतों की ओर से कराये गये निर्माण कार्यों का भुगतान वर्षों से अटका हुआ है। ठेकेदार और दुकानदार प्रधानों पर उधारी चुकाने लगातार दबाव बनाये रहते हैं।

विकास कार्यों में विवाद होने पर पुलिस ग्राम प्रधानों का सहयोग करने के बजाय उन्हें ही दोषी ठहराने लगती है, जिससे उनका मनोबल टूटता है।

ग्राम प्रधानों को बहुत कम मानदेय मिलता है जबकि वे पूरे गांव की जिम्मेदारी उठाते हैं। उनके लिए कोई पेंशन या किसी अन्य योजना की व्यवस्था नहीं होती है।

पंचायत निधि में कटौती से गांवों का विकास रुक गया है। पहले हैंडपंप रीबोर करा लेते थे। अब डीपीआरओ ने रोक लगा दी है।

राहुल सिंह-

मनरेगा मजदूरी का भुगतान महीनों से रुका है। मजदूर हमसे रोज तगादा करते हैं लेकिन हमारे पास जवाब नहीं होता है।

बृजेश निषाद-

ग्राम पंचायत निधि से ही पंचायत सहायक और सामुदायिक शौचालय का मानदेय दिया जाता है। अलग से बजट मिले।

मुन्ना यादव-

मनरेगा के मजदूरों की मजदूरी बढ़े। प्रतिदिन 237 रुपये पर काम करने के लिए कोई मजदूर तैयार नहीं होता है।

सुरेंद्र कुमार यादव

पंचायत निधि की 30 प्रतिशत कटौती कर क्षेत्र पंचायत में जोड़ दिया गया। विकास कार्य ठप हो गये हैं। यह कटौती बंद हो।

विजय भारत यादव-

पक्के काम में प्रयुक्त मैटेरियल का भुगतान डेढ़ साल से लंबित है। दुकानदार अब उधार देने के लिए तैयार नहीं है।

अभिषेक सिंह-

प्रशासनिक अधिकारियों ने पंचायत भवन का निर्माण कराने के लिए दबाव बनाया। डेढ़ साल बाद भी भुगतान नहीं किया गया।

सुभाष चंद्र-

विधायक और सांसदों को पेंशन मिलती है। फिर प्रधानों को क्यों नहीं? वे भी जनप्रतिनिधि हैं। उन्हें भी पेंशन मिलनी चाहिए।

चंचल सिंह-

पंचायतों को बकाया भुगतान के लिए स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। लंबित कामों का भुगतान प्राथमिकता के आधार पर किया जाये।

सुनीता यादव-

ग्राम प्रधानों से पुलिस अक्सर दुर्व्यवहार करती है। समस्या का समाधान करने के बजाय वह हमें अपमानित करती है।

तेज बहादुर-

विकास कार्य के दौरान विवाद होते हैं। बावजूद इसके पुलिस कोई मदद नहीं करती है। इससे काम कराने में दिक्कत होती है।

राजेंद्र यादव-

पंचायतों को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाये। अनावश्यक हस्तक्षेप बंद होने पर हम बेहतर काम कर सकते हैं।

बृजेश यादव-

जलभराव और सड़क निर्माण समेत कई अहम काम के लिए बजट नहीं मिल पाता है। जनता में नाराजगी बढ़ती है।

राजेश कुमार-

प्रशासनिक लापरवाही से ग्राम पंचायतों का विकास रुक रहा है। भुगतान में देरी और अड़चने इसकी खास वजह है।

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