*लखनऊ में फर्जी कॉल सेंटर का खुलासा, एयरलाइंस में नौकरी का झांसा देकर करते थे ठगी, 9 गिरफ्तार*

*लखनऊ में फर्जी कॉल सेंटर का खुलासा, एयरलाइंस में नौकरी का झांसा देकर करते थे ठगी, 9 गिरफ्तार*

सुशील कुमार शुक्ला

जिला संवाददाता- तीखी आवाज लखनऊ

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस ने एक बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा किया है। सरोजनी नगर और बंथरा थाने की पुलिस, सर्विलांस टीम के साथ मिलकर एक फर्जी कॉल सेंटर का भंडाफोड़ किया है। ये कॉल सेंटर लोगों को एयरलाइंस में नौकरी दिलाने का झांसा देकर लाखों रुपये की ठगी कर रहा था। पुलिस ने मौके से चार पुरुष और पांच महिलाओं को गिरफ्तार किया। पूछताछ में सभी ने स्वीकार किया कि वे मिलकर बेरोजगार युवाओं को झांसा देकर उनसे पैसे ऐंठते थे और फिर उन्हें फर्जी नियुक्ति पत्र भेजते थे। डीसीपी साउथ निपुण अग्रवाल ने बताया कि मंगलवार को आउटर रिंग रोड स्थित कानपुर अंडरपास के पास एक बिल्डिंग में दो फर्जी कॉल सेंटर चलने की सूचना मिली थी। पुलिस टीम ने जब वहां छापा मारा तो बिल्डिंग के पहले माले पर स्थित एक दुकान में ‘स्काई नेट इंटरप्राइजेज’ के नाम का बोर्ड लगा मिला। दुकान के अंदर चार युवक और पांच युवतियां लैपटॉप व मोबाइल के जरिए कॉलिंग कर रही थीं। पुलिस टीम को देखते ही सभी घबरा गए और इधर-उधर भागने लगे। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए सभी को हिरासत में ले लिया।

गिरफ्तार किए गए सभी आरोपी लखनऊ के सरोजनी नगर इलाके के दरोगा खेड़ा के रहने वाले हैं। इनकी पहचान कुलदीप, प्रियंका (20), आंचल शर्मा (20), संतोष कुमार (31), अमित सिंह (53), ब्रशाली सिंह (26), आरती सिंह (24), अजय प्रताप सिंह (53) और शालू (21) के रूप में हुई है। पहले तो ये पुलिस को गुमराह करते रहे, लेकिन सख्ती से पूछताछ करने पर उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी।आरोपियों ने बताया कि वे एक संगठित तरीके से कॉल सेंटर चलाते हैं। उनका मुख्य टारगेट ऐसे बेरोजगार युवा होते हैं जो एयरलाइंस या प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की तलाश में रहते हैं। ये लोग इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए डाटा खरीदते थे और फिर फर्जी इंटरव्यू कॉल, ट्रेनिंग फीस, जॉब वेरिफिकेशन जैसे नामों पर पैसे वसूली करते थे। नौकरी देने के नाम पर जो रकम वसूली जाती थी, वह 5 हजार से लेकर 50 हजार तक होती थी। इसके बाद एक फर्जी नियुक्ति पत्र मेल कर दिया जाता था। जब कोई व्यक्ति सच्चाई जानने की कोशिश करता या ज्यादा जानकारी मांगता, तो उसका नंबर तुरंत ब्लॉक कर दिया जाता था।

डीसीपी निपुण अग्रवाल ने बताया कि कॉल सेंटर के कॉलर को 8 से 10 हजार रुपये की सैलरी दी जाती थी। डाटा नोएडा की एक निजी कंपनी से खरीदा जाता था, जिसके लिए हर महीने 15 हजार रुपये दिए जाते थे। यह कंपनी रोजाना 100 सीवी उपलब्ध कराती थी, जिनमें आवेदकों की पूरी डिटेल होती थी। कॉलर उन्हीं डिटेल्स के आधार पर फोन करते थे और ठगी की प्रक्रिया को अंजाम देते थे। कॉलर को ठगी की रकम के हिसाब से इंसेंटिव भी मिलता था।

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